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बुझने दे सब दिए मुझे तन्हाई चाहिए - अंजुम सलीमी कविता - Darsaal

बुझने दे सब दिए मुझे तन्हाई चाहिए

बुझने दे सब दिए मुझे तन्हाई चाहिए

कुछ देर के लिए मुझे तन्हाई चाहिए

कुछ ग़म कशीद करने हैं अपने वजूद से

जा ग़म के साथिए मुझे तन्हाई चाहिए

उकता गया हूँ ख़ुद से अगर मैं तो क्या हुआ

ये भी तो देखिए मुझे तन्हाई चाहिए

इक रोज़ ख़ुद से मिलना है अपने ख़ुमार में

इक शाम बिन पिए मुझे तन्हाई चाहिए

तकरार इस में क्या है अगर कह रहा हूँ मैं

तन्हाई चाहिए मुझे तन्हाई चाहिए

दुनिया से कुछ नहीं है सरोकार अब मुझे

बे-शक मिरे लिए मुझे तन्हाई चाहिए

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