ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
न तुम बे-कार बैठे हो न हम बे-कार बैठे हैं
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
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गुज़र रहे हैं गुज़रने वाले
पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
कुछ अजनबी से लोग थे कुछ अजनबी से हम
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
आज का झगड़ा आज चुका
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
दुखी दिलों के लिए ताज़ियाना रखता है
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
जहाँ तक गया कारवान-ए-ख़याल
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ