सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगा
जो हुआ हाल हमारा सो तुम्हारा होगा
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किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
गुज़र रहे हैं गुज़रने वाले
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ
पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
हम से भी गाहे गाहे मुलाक़ात चाहिए