पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
जब जी चाहा धो लिए गंगा-जल के साथ
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रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा
आज का झगड़ा आज चुका
क़लंदरी है कि रखता है दिल ग़नी 'अंजुम'
हम से भी गाहे गाहे मुलाक़ात चाहिए
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ