आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
अहल-ए-ज़मीं हैं हम हमें दिन रात चाहिए
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मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
आज का झगड़ा आज चुका
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ
दुखी दिलों के लिए ताज़ियाना रखता है
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
क़लंदरी है कि रखता है दिल ग़नी 'अंजुम'
है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी
जहाँ तक गया कारवान-ए-ख़याल
रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'