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हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा - अंजुम रूमानी कविता - Darsaal

हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा

हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा

लेकिन हमें उस वक़्त कोई होश न होगा

देखोगे तो आएगी तुम्हें अपनी जफ़ा याद

ख़ामोश जिसे पाओगे ख़ामोश न होगा

गुज़रे हैं वो लम्हे कि सदा याद रहेंगे

देखा है वो आलम कि फ़रामोश न होगा

हम अपनी शिकस्तों से हैं जिस तरह बग़ल-गीर

यूँ क़ब्र से भी कोई हम-आग़ोश न होगा

पी जाते हैं ज़हर-ए-ग़म-ए-हस्ती हो कि मय हो

हम सा भी ज़माने में बला-नोश न होगा

होने को तो दुनिया में कई पर्दा-नशीं हैं

लेकिन तिरी सूरत कोई रू-पोश न होगा

पाओगे न आज़ाद-ए-ग़म-अंजुम किसी दिल को

होगा ग़म-ए-फ़र्दा जो ग़म-ए-दोश न होगा

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