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हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में - अंजुम लुधियानवी कविता - Darsaal

हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में

हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में

घर किया तामीर जिस ने दीमकों के शहर में

ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम

कौन अमृत घोल देता है हमारे ज़हर में

किस को है मरने की फ़ुर्सत सब यहाँ मसरूफ़ हैं

मौत तू बेकार में आई है ऐसे शहर में

टूटी कश्ती की तरह हैं वक़्त के साहिल पे हम

क्या ज़माना था बहा करते थे अपनी लहर में

एक वीरानी सी अंजुम रह गई आँखों में अब

ख़्वाब सारे बह गए हैं आँसुओं की नहर में

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