हँसी में टाल तो देता हूँ अक्सर
हँसी में टाल तो देता हूँ अक्सर
मगर मैं ख़ुश नहीं बर्बाद हो कर
कोई मरता नहीं ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से
ज़रा सा दाग़ पड़ जाता है दिल पर
लिखी है रेग-ए-साहिल पर जो मैं ने
वो चिट्ठी पढ़ नहीं सकता समुंदर
जहाँ हम हैं वहाँ सब दाएरे हैं
किसी का कोई मरकज़ है न मेहवर
मुझे जाना है वापस बादलों में
नहीं होना मुझे क़तरे से गौहर
मुझे कुछ देर रुकना चाहिए था
वो शायद देख ही लेता पलट कर
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