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जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं - अंजुम ख़लीक़ कविता - Darsaal

जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं

जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं

वही दो-चार तो बस्ती में घर आबाद होते हैं

बहुत साबित-क़दम निकलें गए वक़्तों की तहज़ीबें

कि अब उन के हवालों से खंडर आबाद होते हैं

बुज़ुर्गों को तबर्रुक की तरह रक्खो मकानों में

बलाएँ रद किए जाने से घर आबाद होते हैं

ज़बाँ-बंदी के मौसम में गली-कूचों की मत पूछो

परिंदों के चहकने से शजर आबाद होते हैं

जो पत्थर की सिलों को ताज-महलों में बदल डालें

यहाँ कच्चे घरों में वो हुनर आबाद होते हैं

मिरे अंदोह में मुज़्मर है उस की सरख़ुशी ऐसे

डुबो कर कश्तियाँ जैसे भँवर आबाद होते हैं

मिरी ता'मीर बेहतर शक्ल में होने को है 'अंजुम'

कि जंगल साफ़ होने से नगर आबाद होते हैं

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