Ghazals of Anjum Khaleeq
नाम | अंजुम ख़लीक़ |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Anjum Khaleeq |
जन्म की तारीख | 1950 |
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया
यहाँ जो ज़ख़्म मिलते हैं वो सिलते हैं यहीं मेरे
तहय्युर है बला का ये परेशानी नहीं जाती
सितमगरों से डरूँ चुप रहूँ निबाह करूँ
सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
पलकों तक आ के अश्क का सैलाब रह गया
मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा
कुछ उज़्र पस-ए-वा'दा-ख़िलाफ़ी नहीं रखते
कितना ढूँडा उसे जब एक ग़ज़ल और कही
ख़ाक का रिज़्क़ यहाँ हर कस-ओ-ना-कस निकला
कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा
कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना
जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं
जब तक फ़सील-ए-जिस्म का दर खुल न जाएगा
हम अपने ज़ौक़-ए-सफ़र को सफ़र सितारा करें
हर शे'र से मेरे तिरा पैकर निकल आए
दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है
चाहे तू शौक़ से मुझे वहशत-ए-दिल शिकार कर
बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना
ब-फ़ैज़-ए-आगही ये क्या अज़ाब देख लिया
बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब
अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है