लौट कर यक़ीनन मैं एक रोज़ आऊँगा
पलकों पे चराग़ों का एहतिमाम कर लेना
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इस ने देखा है सर-ए-बज़्म सितमगर की तरह
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया
इतनी सारी शामों में एक शाम कर लेना
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
अदा हुआ न कभी मुझ से एक सज्दा-ए-शुक्र
लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया
कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद
क्या अजब है कि ये मुट्ठी में हमारी आ जाए
फ़सील-ए-जिस्म पे शब-ख़ूँ शरारतें तेरी
यक-ब-यक जाँ से गुज़रना तो है आसाँ 'अंजुम'
और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो
ख़ुद-कुशी का अलमिया