कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद
ज़ख़्मों पर वो लम्हे मरहम होते हैं
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Gulzar
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सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
रक़्स-ए-जुनूँ की गर्मी-ए-तासीर देखना
बड़ी फ़र्ज़-आश्ना है सबा करे ख़ूब काम हिसाब का
लौट कर यक़ीनन मैं एक रोज़ आऊँगा
याद है क़िस्सा-ए-ग़म का मुझे हर लफ़्ज़ अभी
धूप आती नहीं रुख़ अपना बदल कर देखें
सफ़र में हर क़दम रह रह के ये तकलीफ़ ही देते
जो न हों कुछ तशरीह-तलब कम होते हैं
यक-ब-यक जाँ से गुज़रना तो है आसाँ 'अंजुम'
अब इस सादा कहानी को नया इक मोड़ देना था
ख़ुद-कुशी का अलमिया