चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
चुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी
Anwar Masood
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
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ख़ुद-कुशी का अलमिया
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया
आबादियों में कैसे दरिंदे घुस आए हैं
और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो
इस ने देखा है सर-ए-बज़्म सितमगर की तरह
याद है क़िस्सा-ए-ग़म का मुझे हर लफ़्ज़ अभी
अब किसी अंधे सफ़र के लिए तय्यार हुआ चाहता है
जो न हों कुछ तशरीह-तलब कम होते हैं
यक-ब-यक जाँ से गुज़रना तो है आसाँ 'अंजुम'
कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद
धूप आती नहीं रुख़ अपना बदल कर देखें
अदा हुआ न कभी मुझ से एक सज्दा-ए-शुक्र