ख़ुद-कुशी का अलमिया
मोटर के पहिए बिजली के खम्बे पे चंद छींटे कुछ
चिकनी सड़क पे दूर तक इक सुर्ख़ सी लकीर
फ़ुट-पाथ पे कुछ जा-ब-जा धब्बे सियाह ओ सुर्ख़
नाली के गदले पानी के सीने पे चंद दाग़
बाउंड्री-वॉल पर भी कुछ स्पाॅट खुरदुरे
चेहरों पे राहगीरों के ना-ख़ुश-गवार नक़्श
माहौल में इक लम्हा को बे-नाम सा तनाव
आँखें मिरी उबल पड़ीं हैरान रह गया
गोया कि आज तक का किया राएगाँ गया
दरिया अगर नहीं तो रवाँ जू-ए-ख़ूँ सही
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