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सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा - अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी कविता - Darsaal

सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा

सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा

प्यार नादान को मत दे कि ये मर जाएगा

रविश-ए-आम से होश्यार कि पछताएगा

वक़्त को छोड़ ये पानी है गुज़र जाएगा

सच कोई फ़न तो नहीं है जो सिखाया जाए

झूट से काम ले सच बोलना आ जाएगा

दो पहर हाल-ए-ग़नीमत हैं अकेले-पन से

साथ मत छोड़ कि आँखों में बिखर जाएगा

बहर-ए-ज़ुल्मात पसीना है मिरी आँखों का

ज़िद न कर काम ये आँसू का भी कर जाएगा

इन लहू-रंग फ़ज़ाओं पे न जा बात समझ

घर के आसेब से बच वक़्त बदल जाएगा

मेरी ग़ज़लें हैं मोहब्बत के सहीफ़े 'अंजुम'

पढ़ने वालों को तिलावत का मज़ा आएगा

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