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किस का भेद कहाँ की क़िस्मत पगले किस जंजाल में है - अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी कविता - Darsaal

किस का भेद कहाँ की क़िस्मत पगले किस जंजाल में है

किस का भेद कहाँ की क़िस्मत पगले किस जंजाल में है

बाज़ी है इक सादा-काग़ज़ सारा कर्तब चाल में है

एक रहें या दो हो जाएँ रुस्वाई हर हाल में है

जीवन रूप की सारी शोभा जीवन के जंजाल में है

तुझ से बिछड़ कर तुझ से मिल कर दोनों मौसम देख लिए

बात जहाँ थी अब भी वहीं है फ़र्क़ ज़रा सा हाल में है

आख़िर ऊपरी हमदर्दी को रंग तो इक दिन लाना था

बात थी पहले चंद घरों तक अब दुनिया भौंचाल में है

तुम अपनी आँखों की लाली फूलों में तक़्सीम करो

मेरे दिल का हाल न पूछो रहने दो जिस हाल में है

जीवन भेदन की चिंता छोड़ो आओ कुछ इस पर बात करें

हम धरती के फंदे में हैं धरती किस के जाल में है

'अंजुम' प्यार जिसे कहते हैं उस के ढंग न्यारे हैं

चुप में है सुख चैन न कोई राहत क़ील-ओ-क़ाल में है

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