बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द
बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द
और भी ऐसे कई राज़ हैं इस राज़ के बा'द
क़द्र क्या सोज़-ए-तजल्ली की सहर साज़ के बा'द
ठहर सकती नहीं शबनम मिरी पर्वाज़ के बा'द
अपनी मंज़िल तो बना लेते हैं दुनिया वाले
मैं कहाँ जाऊँ तिरी जल्वा-गह-ए-नाज़ के बा'द
मैं ही दुनिया की सदा बन के नहीं हूँ ख़ामोश
ख़ुद भी चुप हो गई दुनिया मिरी आवाज़ के बा'द
लोग आग़ाज़ से करते हैं तलाश-ए-अंजाम
मैं ने अंजाम न सोचा कभी आग़ाज़ के बा'द
मैं गुनहगार-ए-नशेमन हूँ न पाबंद-ए-क़फ़स
फ़ितरतन कुछ तो सुकूँ चाहिए पर्वाज़ के बा'द
इस मोहब्बत में है तौहीन-ए-मोहब्बत 'अंजुम'
वो अगर मुझ को पुकारें मिरी आवाज़ के बा'द
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