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गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो - अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी कविता - Darsaal

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

ख़ुद कौन चाहता है कि जीना मुहाल हो

मैं ने तमाम-उम्र गुज़ारी है दिल के साथ

लाओ मिरे हुज़ूर जो अम्र-ए-मुहाल हो

ये सोच कर फ़रेब-ए-मोहब्बत में आ गए

हम इतने ख़ुश कहाँ जो नतीजा मलाल हो

मैं जैसे अजनबी कोई अपने दयार में

तुम जैसे मेरे ज़ेहन में कोई सवाल हो

दिल के मुआ'मलात ही यारो अजीब हैं

अपनी ख़बर नहीं है तो किस का ख़याल हो

हम एहतियात-ए-दीदा-ओ-दिल से गुज़र चुके

आ जाए सामने जो ख़ुदा-ए-जमाल हो

सोज़-ए-ग़म-ए-हयात से 'अंजुम' गुरेज़ कर

लोहा नहीं है दिल जो तपाने से लाल हो

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