जो शब भर आँसुओं से तर रहेगा
जो शब भर आँसुओं से तर रहेगा
सहर दम दामन-ए-दिल भर रहेगा
इलाज उस का गुज़र जाना है जाँ से
गुज़र जाने का जाँ से डर रहेगा
हुआ मुश्किल तिरे आशिक़ का जीना
तिरे कूचे में आ कर मर रहेगा
दिल-ए-वहशी ने कब आराम पाया
सितम की आग में जल कर रहेगा
हयात-ए-जावेदाँ हो या कि दुनिया
तिरा बंदा तिरे दर पर रहेगा
न हो इस्याँ तो कैसा हश्र का दिन
कहाँ फिर दावर-ए-महशर रहेगा
हक़ाएक़ से जो दिल उलझा हुआ है
वही ख़्वाबों का सूरत-गर रहेगा
कोई तो ख़ैर का पहलू भी निकले
अकेला किस तरह ये शर रहेगा
न बज़्म-ए-मय-कदा बाक़ी रहेगी
न दस्त-ए-शौक़ में साग़र रहेगा
जो दिन है आने वाला बे-अमाँ है
क़दम घर से अगर बाहर रहेगा
कोई तो आज़मी-साहिब को समझाओ
ये गोशा शहर से बेहतर रहेगा
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