परवरदिगार दे मुझे ग़ैरत-शिआ'र आँख
परवरदिगार दे मुझे ग़ैरत-शिआ'र आँख
पास-ओ-लिहाज़-ए-मेहर की सरमाया-दार आँख
क्या शान है फ़रासत-ए-मोमिन की देखना
अनवार-ए-किब्रिया की है मन्नत-गुज़ार आँख
गर आँख दे ख़ुदा तो बसीरत अता करे
ख़ाकिस्तर-ए-जहाँ से न हो पुर-ग़ुबार आँख
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