म'अरका जब छिड़ गया तो क्या हुआ हम से सुनो
म'अरका जब छिड़ गया तो क्या हुआ हम से सुनो
कुश्तगान-ए-शहर-ए-ख़ूँ का माजरा हम से सुनो
क्यूँ शजर सूखे हुए हैं क्यूँ नहीं बर्ग ओ समर
मौसमों ने इस चमन में क्या किया हम से सुनो
पर्दा-ए-सद-रंग-हैरत ख़ाना-ए-नैरंग में
कौन है आईना-अंदर-आइना हम से सुनो
ताक़ ओ दर में क्यूँ चराग़ों की लवें ख़ामोश हैं
क्या हुआ वो रौशनी का सिलसिला हम से सुनो
और ये चश्म-ए-तमाशा बंद हो जाती है जब
पर्दा-ए-दिल पर नज़र आता है क्या हम से सुनो
क्यूँ नहीं होते मुनाजातों के मअनी मुन्कशिफ़
रम्ज़ बन जाता है क्यूँ हर्फ़-ए-दुआ हम से सुनो
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