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ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है - आनंद नारायण मुल्ला कविता - Darsaal

ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है

ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है

फिर भी राहत की उम्मीद-ए-ख़ाम है

हाँ अभी तेरी मोहब्बत ख़ाम है

तेरे दिल में काविश-ए-अंजाम है

इश्क़ है मैं हूँ दिल-ए-नाकाम है

इस के आगे बस ख़ुदा का नाम है

आ कहाँ है तू फ़रेब-ए-आरज़ू

आज नाकामी से लेना काम है

मैं वही हूँ दिल वही अरमाँ वही

एक धोका गर्दिश-ए-अय्याम है

अपने जी में ये कि दुनिया छोड़ दें

और दुनिया को हमीं से काम है

जल चुके चश्म-ए-अइज़्ज़ा में चराग़

सो भी जा 'मुल्ला' कि वक़्त-ए-शाम है

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