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सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले - आनंद नारायण मुल्ला कविता - Darsaal

सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले

सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले

तू ने रोका भी था मुजरिम को ख़ता से पहले

अश्क आँखों में हैं होंटों पे बुका से पहले

क़ाफ़िला-ए-ग़म का चला बाँग-ए-दरा से पहले

ये तो सच है कि तुझे तर्क-ए-जफ़ा का हक़ है

हाँ मगर पूँछ तो ले अहल-ए-वफ़ा से पहले

उड़ गया जैसे यकायक मिरे शानों पर से

वो जो इक बोझ था तस्लीम-ए-ख़ता से पहले

हाँ यही दिल जो किसी का है अब आईना-ए-हुस्न

एक पत्थर था मोहब्बत की जिला से पहले

आँख झपका भी तो दे दिल को चुराने वाले

इक तबस्सुम निगह-ए-होश-रुबा से पहले

लज़्ज़त-ए-ज़ीस्त कोई उस के मुक़ाबिल की नहीं

वो जो इक कैफ़ सा तारी है ख़ता से पहले

इब्तिदा ही से न दे ज़ीस्त मुझे दर्स उस का

और भी बाब तो हैं बाब-ए-रज़ा से पहले

दर-ए-मय-ख़ाना से आती है सला-ए-ताज़ा

आज सैराब किए जाएँगे प्यासे पहले

राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना

क्या वो मद-मस्त न था लग़्ज़िश-ए-पा से पहले

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