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काम इश्क़-ए-बे-सवाल आ ही गया - आनंद नारायण मुल्ला कविता - Darsaal

काम इश्क़-ए-बे-सवाल आ ही गया

काम इश्क़-ए-बे-सवाल आ ही गया

ख़ुद-ब-ख़ुद उस को ख़याल आ ही गया

तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र

दिल के आईने में बाल आ ही गया

दो मिरी गुस्ताख़ नज़रों को सज़ा

फिर वो ना-गुफ़्ता सवाल आ ही गया

ज़िंदगी से लड़ न पाया जोश-ए-दिल

रफ़्ता रफ़्ता ए'तिदाल आ ही गया

हुस्न की ख़ल्वत में दर्राता हुआ

इश्क़ की देखो मजाल आ ही गया

ग़म भी है इक पर्दा-ए-इज़हार-ए-शौक़

छुप के आँसू में सवाल आ ही गया

वो उफ़ुक़ पर आ गया मेहर-ए-शबाब

ज़िंदगी का माह-ओ-साल आ ही गया

बे-ख़ुदी में कह चला था राज़-ए-दिल

वो तो कहिए कुछ ख़याल आ ही गया

हम न कर पाए ख़ता बुज़दिल ज़मीर

ले के तस्वीर-ए-मआ'ल आ ही गया

इब्तिदा-ए-इश्क़ को समझे थे खेल

मरने जीने का सवाल आ ही गया

लाख चाहा हम न लें ग़म का असर

रुख़ पे इक रंग-ए-मलाल आ ही गया

बच के जाओगे कहाँ 'मुल्ला' कोई

हाथ में ले कर गुलाल आ ही गया

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