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तीरगी ताक़ में जड़ी हुई है - अम्मार इक़बाल कविता - Darsaal

तीरगी ताक़ में जड़ी हुई है

तीरगी ताक़ में जड़ी हुई है

धूप दहलीज़ पर पड़ी हुई है

दिल पे नाकामियों के हैं पैवंद

आस की सोई भी गड़ी हुई है

मेरे जैसी है मेरी परछाईं

धूप में पल के ये बड़ी हुई है

घेर रक्खा है ना-रसाई ने

और ख़्वाहिश वहीं खड़ी हुई है

मैं ने तस्वीर फेंक दी है मगर

कील दीवार में गड़ी हुई है

हारता भी नहीं ग़म-ए-दौराँ

ज़िद पे उम्मीद भी अड़ी हुई है

दिल किसी के ख़याल में है गुम

रात को ख़्वाब की पड़ी हुई है

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