तबस्सुम
चमक हीरे से बढ़ कर ऐ तबस्सुम तुझ में पिन्हाँ है
उन्हीं होंटों पे ज़ौ बिखरा तू जिन होंटों को शायाँ है
मिसाल-ए-बर्क़ तू गिरता है जान-ए-ना-शकेबा पर
गिरी थी जिस तरह बिजली कलीम-ए-तूर-ए-सीना पर
न होगा ला'ल कोई तेरी क़ीमत का बदख़्शाँ में
तू ही इक मिस्रा-ए-बरजस्ता है क़ुदरत के दीवाँ में
जहाँ की दौलतों में कोई भी दौलत नहीं ऐसी
फ़लक पर कब चमकती है सितारों की जबीं ऐसी
ग़म-ए-दुनिया का शाकी जब हुआ हक़ से दिल-ए-आदम
तुझे दे कर अता फ़रमा दिया हर ज़ख़्म का मरहम
हुआ जाता है पज़मुर्दा दिल-ए-आवारा सीने में
तो टपका क़तरा-ए-आब-ए-बक़ा इस आबगीने में
झलक पल-भर की है लेकिन असर है दाइमी तेरा
सर-ए-गुलज़ार दम भरती है गोया हर कली तेरा
लब-ए-जाँ-बख़्श पर कुछ कुछ नुमायाँ हो के रह जा फिर
अधूरी रह गई है दास्तान-ए-इश्क़ कह जा फिर
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