पेच-ओ-ताब
फिर तसव्वुर खा रहा है पेच-ओ-ताब
फिर वही हैजान-ओ-हरकत कर्ब-ओ-दर्द-ओ-इज़तिराब
फिर वही धुँदले नुक़ूश-ए-माह-ओ-साल
फिर वही सुब्ह-ए-बहाराँ फिर वही शाम-ए-विसाल
फिर वही बीते हुए लम्हों की याद
फिर वही मौजें वही कश्ती वही बाद-ए-मुराद
फिर वही रक़्स-ए-शरार-ए-ज़िंदगी
फिर वही हुस्न-ए-लताफ़त-रेज़ की ताबिंदगी
फिर वही वा'दों पे लुत्फ़-ए-इंतिज़ार
फिर वही चश्म-ए-सुख़न-गो के इशारे बार बार
फिर वही दर्द-ए-मुसलसल की कसक
फिर वही मौज-ए-तबस्सुम-हा-ए-पिन्हाँ की झनक
फिर वही ऐश-ओ-तरब का एहतिमाम
फिर वही बज़्म-ए-तमन्ना फिर वही साक़ी-ओ-जाम
फिर वही आग़ाज़-ए-उल्फ़त का सुरूर
फिर वही यादों के साए ज़ेहन में नज़दीक-ओ-दूर
फिर वही शोरिश वही जोश-ओ-ख़रोश
फिर कहीं दीवानगी तारी न हो ऐ दिल ख़मोश
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