तराना-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ है हर ख़ुशी अपनी
तराना-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ है हर ख़ुशी अपनी
कि एक दर्द-ए-मुसलसल है ज़िंदगी अपनी
बहल न जाए कहीं ये दिल-ए-ख़िज़ाँ-मानूस
बहार आ के दिखाती है दिलकशी अपनी
किसी के चेहरा-ए-ज़ेबा से उस को क्या निस्बत
यूँही बिखेरा करे चाँद चाँदनी अपनी
शुऊ'र-ए-चाक-ए-गरेबाँ किधर है दामन-ए-यार
जुनूँ की हद से मिली जा के आशिक़ी अपनी
बता कि ये भी कोई शान-ए-बे-नियाज़ी है
सुनी न हाए कोई तू ने गुफ़्तनी अपनी
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