मुझे दैर भी हो क्यूँ कर न हरम की तरह प्यारा
मुझे दैर भी हो क्यूँ कर न हरम की तरह प्यारा
तू यहाँ भी जल्वा-आरा तू वहाँ भी जल्वा-आरा
है अजीब ये तमाशा है अजीब ये नज़ारा
मिरी आहों का शरारा मिरे आँसुओं का धारा
वो पयाम-ए-शाम-ए-ग़म हो कि नवेद-ए-सुब्ह-ए-इशरत
मुझे ये भी है गवारा मुझे वो भी है गवारा
यूँही मुझ को डूबने दो इन्हीं मौज-हा-ए-ग़म में
कि मुहीत-ए-ग़म का शायद अभी दूर है किनारा
न फ़रोग़-ए-रू-ए-ताबाँ न निगाह-ए-नूर-अफ़्शाँ
मिरे इज़्तिराब-ए-दिल से मिरा राज़ आश्कारा
कोई क्या समझ सकेगा ये है फ़ैज़-ए-इश्क़ जिस ने
मुझे इस तरह बिगाड़ा मुझे इस तरह सँवारा
कोई चीज़ भी है क़िस्मत कोई शय भी है मुक़द्दर
कि मैं अपनी कोशिशों में यहाँ बार-बार हारा
ये हुजूम-ए-ना-उमीदी ये वुफ़ूर-ए-ना-मुरादी
हूँ अजब मुसीबतों में मैं मुसीबतों का मारा
मुझे इल्म इस का क्या था मुझे क्या ख़बर थी 'नजमी'
कि मुझी को फूँक देगा मिरे इश्क़ का शरारा
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