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जाएँ कहाँ हम आप का अरमाँ लिए हुए - अमजद नजमी कविता - Darsaal

जाएँ कहाँ हम आप का अरमाँ लिए हुए

जाएँ कहाँ हम आप का अरमाँ लिए हुए

दर्द-ए-फ़िराक़-ओ-काविश-ए-हिज्राँ लिए हुए

इन आँसुओं की तुम को हक़ीक़त बताएँ क्या

आँखें हैं मेरी शौकत-ए-तूफ़ाँ लिए हुए

रंज-ए-फ़िराक़ भी है नशात-ए-विसाल भी

हूँ साथ साथ दर्द के दरमाँ लिए हुए

आसाँ नहीं विसाल तो दुश्वार भी नहीं

मुश्किल में हूँ ये मुश्किल-ए-आसाँ लिए हुए

रहमत ने लूट लूट लिया मुझ को हश्र में

पहुँचा जो मैं बिज़ाअ'त-ए-इस्याँ लिए हुए

यारब हो ख़ैर आमद-ए-फ़स्ल बहार की

दस्त-ए-जुनूँ है चाक-ए-गरेबाँ लिए हुए

'नजमी' हमारी चश्म-ए-बसीरत के वास्ते

है गुल की पंखुड़ी भी गुलिस्ताँ लिए हुए

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