तुझ को मा'लूम नहीं क्या है तिरी यादों से

तुझ को मा'लूम नहीं क्या है तिरी यादों से

एक अंजान सा रिश्ता है तिरी यादों से

रात बेचैन सी सर्दी में ठिठुरती है बहुत

दिन भी हर रोज़ सुलगता है तिरी यादों से

हिज्र के ग़म ने मुझे मार दिया था तो क्या

मर के जीना भी तो सीखा है तिरी यादों से

आज फिर से जो हुआ क़ैद तो ये सोचूँ हूँ

कल ही सोचा था कि बचना है तिरी यादों से

ऐसे शामिल था मैं तुझ में कि बड़ी मुश्किल से

मैं ने अब ख़ुद को निकाला है तिरी यादों से

क्या बताएँ कि यहाँ कैसे गुज़ारी हम ने

अपनी हर साँस को सींचा है तिरी यादों से

'मीत' यादों ने भी कितना है सताया मुझ को

मिरा तकिया बड़ा भीगा है तिरी यादों से

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