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मुझ को पाने के सिवा और तमन्ना क्या है - अमित शर्मा मीत कविता - Darsaal

मुझ को पाने के सिवा और तमन्ना क्या है

मुझ को पाने के सिवा और तमन्ना क्या है

मेरे बारे में बता तेरा इरादा क्या है

इश्क़ की शाख़ पे आता है चला जाता है

दिल के पंछी का भला ठोर-ठिकाना क्या है

हर नशा कर के यहाँ देख चुका हूँ यारों

भूल जाने का उसे और तरीक़ा क्या है

तेरी यादों में बहाए हैं जो आँसू इतने

आँख भी पूछ रही है कि बचाया क्या है

यूँ मुलाक़ात का ये दौर बनाए रखिए

मौत कब साथ निभा जाए भरोसा क्या है

हिज्र के बा'द ये सोचो कि कहाँ जाओगे

हम तो मर जाएँगे वैसे भी हमारा क्या है

'मीत' ख़्वाबों की ख़ुमारी से निकलने के बाद

उस से इक बार तो पूछो कि बताता क्या है

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