दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है

दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है

तब समझा ये सब कुछ खेल-तमाशा है

हाथों की दो-चार लकीरें पढ़ कर के

वो कहता है आगे सब कुछ अच्छा है

उस से पहली बार मिला पर हैराँ हूँ

दिल में तब से घर कर के वो बैठा है

काग़ज़ पर दिल की तस्वीर बना कर के

उस ने पूछा ये किस शय का नक़्शा है

सोच रहा हूँ मैं उस का सौदा कर दूँ

उस की यादों का जो दिल में मलबा है

दोनों पहलू में ही हार छिपी इस में

मेरे हाथों में अब ये जो सिक्का है

इस ख़ातिर मैं रोज़ मशक़्क़त करता हूँ

आसानी से क्या हासिल हो पाता है

जब क़ुदरत ने थोड़ा आज नवाज़ा तो

सारे मुझ से पूछे हैं तू कैसा है

'मीत' यहाँ अपने तो नाम के अपने हैं

अन-जानों से रिश्ता दिल का गहरा है

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