तड़पती देखता हूँ जब कोई शय
उठा लेता हूँ अपना दिल समझ कर
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बढ़ गई मय पीने से दिल की तमन्ना और भी
कहने सुनने से मिरी उन की अदावत हो गई
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से
कीजिए ऐसा जहाँ पैदा जहाँ कोई न हो
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो