नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
हम इख़्तियार में हैं न दिल इख़्तियार में
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भूले से भी न जानिब-ए-अग़्यार देखना
कहने सुनने से मिरी उन की अदावत हो गई
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
तड़पती देखता हूँ जब कोई शय
ग़ैब से सहरा-नवरदों का मुदावा हो गया
इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का
क्या ख़बर मुझ को ख़िज़ाँ क्या चीज़ है कैसी बहार
अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने