कीजिए ऐसा जहाँ पैदा जहाँ कोई न हो
ज़र्रा-ओ-अख़तर ज़मीन-ओ-आसमाँ कोई न हो
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क्यूँ ख़राबात में लाफ़-ए-हमा-दानी वाइ'ज़
कहने सुनने से मिरी उन की अदावत हो गई
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
बढ़ गई मय पीने से दिल की तमन्ना और भी
दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
ख़ाली सही बला से तसल्ली तो दिल को हो
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को