गर यही है पास-ए-आदाब-ए-सुकूत
किस तरह फ़रियाद लब तक आएगी
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भूले से भी न जानिब-ए-अग़्यार देखना
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
ग़ैब से सहरा-नवरदों का मुदावा हो गया
वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा
वस्ल में बिगड़े बने यार के अक्सर गेसू
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं