आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
Anwar Masood
Habib Jalib
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Gulzar
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Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
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ग़ैब से सहरा-नवरदों का मुदावा हो गया
कहने सुनने से मिरी उन की अदावत हो गई
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
कल मिरा था आज वो बुत ग़ैर का होने लगा
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा
भूले से भी न जानिब-ए-अग़्यार देखना
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को