कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
वो तबस्सुम जो हक़ीक़त में फ़ुग़ाँ होता है
Jaun Eliya
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ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है
क्यूँ हुए क़त्ल हम पर ये इल्ज़ाम है क़त्ल जिस ने किया है वही मुद्दई
इश्क़ सर-ता-ब-क़दम आतिश-ए-सोज़ाँ है मगर
अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे
सबक़ मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
ताना-ए-इस्याँ देने वालो एक नज़र इस पर भी डालो
ओस का नन्हा सा क़तरा हूँ फूलों में तुल जाऊँगा
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें
दीवानों को अहल-ए-ख़िरद ने चौराहे पर सूली दी है
अक़्ल थक कर लौट आई जादा-ए-आलाम से
उलझे हुए साँसों की घुटन कैसे दिखाऊँ