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लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम - आमिर उस्मानी कविता - Darsaal

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम

बनते गए क़दम-ब-क़दम आइना से हम

इस दर्जा पाएमाल न होते जफ़ा से हम

लूटे गए सियासत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से हम

बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद

बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम

देखी गई न हम से शिकस्त-ए-ग़ुरूर-ए-हुस्न

शरमा गए इरादा-ए-तर्क-ए-वफ़ा से हम

ये क्या कहा जुनूँ है मोहब्बत की इंतिहा

ऐ बे-ख़बर चले हैं इसी इंतिहा से हम

माना कि दिल को तेरे न मिलने का ग़म रहा

सद शुक्र बच गए तलब-ए-मा-सिवा से हम

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