ताना-ए-इस्याँ देने वालो एक नज़र इस पर भी डालो
मेरी तौबा के शीशे पर फ़ितरत ने ख़ुद पत्थर फेंका
बे-मौसम घिर आए बादल बिन बादल भी बरसा पानी
मैं ने जब भी तौबा कर के मीना तोड़ी साग़र फेंका
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इश्क़ के मराहिल में वो भी वक़्त आता है
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम
इल्तिजा
न सकत है ज़ब्त-ए-ग़म की न मजाल-ए-अश्क-बारी
आप की राह में क्या क्या न सहा था हम ने
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें
मिरी ज़िंदगी का हासिल तिरे ग़म की पासदारी
सबक़ मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ