मैं न कहा करता था साक़ी तिश्ना-लबों की आह न ले
प्यास भी शोला बन सकती है प्यासों को तरसाने से
देख वो जल उट्ठा मय-ख़ाना देख वो सुलगे जाम-ओ-सुबू
निकली थी पहली चिंगारी मेरे ही पैमाने से
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1480) Peoples Rate This
मिरी ज़िंदगी का हासिल तिरे ग़म की पासदारी
थी सियाहियों का मस्कन मिरी ज़िंदगी की वादी
इश्क़ के मराहिल में वो भी वक़्त आता है
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें
अक़्ल थक कर लौट आई जादा-ए-आलाम से
ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है
ज़ाहिरन तोड़ लिया हम ने बुतों से रिश्ता
सबक़ मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
ताना-ए-इस्याँ देने वालो एक नज़र इस पर भी डालो
अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
उलझे हुए साँसों की घुटन कैसे दिखाऊँ