मौज-दर-मौज तो साहिल की रगों पर दौड़े
मौज-दर-मौज तो साहिल की रगों पर दौड़े
प्यास बुझ पाई नहीं लाख समुंदर दौड़े
शहर-ए-ईक़ान का हर कतबा गवाही देगा
वक़्त की पीठ पे उम्मीदों के लश्कर दौड़े
मेरे एहसास की चौखट पे उतर आए हैं
चंद ज़र्रे जो सर-ए-राह मचल कर दौड़े
तीरगी आज तिरी ज़ोर को हम देखेंगे
हाथ में नूर लिए तीरा मुक़द्दर दौड़े
लोग सच्चाई को तस्लीम करेंगे 'आमिर'
तख़्ता-ए-दार की जानिब जो तिरा सर दौड़े
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