कुछ सुलगते हुए ख़्वाबों की फ़रावानी है
कुछ सुलगते हुए ख़्वाबों की फ़रावानी है
शहर-ए-एहसास में आइंदा की ताबानी है
साअ'त-ए-शाम का दरवाज़ा पिघल जाएगा
चश्म-ए-उम्मीद में वो शो'ला-ए-इम्कानी है
जिस्म पर अपने भी पोशाक सँभाले रखिए
सीना-ए-दश्त पे उतरी शब-ए-उर्यानी है
कब तलक टूटती साँसों पे सदाएँ रखूँ
हल्का-ए-ज़ीस्त की ज़ंजीर भी लायानी है
अब कहाँ जा के ये ज़रदाब नज़र ठहरेगी
दूर तक फैली हुई सरहद-ए-वीरानी है
लौह-ए-बे-रंग पे तो अक्स-ए-ख़ुदी रौशन है
पैकर-ए-ख़ाक के चेहरे पे परेशानी है
तर-ब-तर हो गए हालात के चेहरे 'आमिर'
अहल-ए-दामान-ए-ख़िरद पर बड़ी हैरानी है
(1055) Peoples Rate This