खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ
खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ
बयान-ए-हर्फ़-ओ-नवा पैरहन तुम्हारा कुछ
ग़ुबार-ए-गर्द में गुम था सहर का मीनारा
शफ़क़ के साथ हुआ फिर भी आश्कारा कुछ
तिलिस्म-ए-शब की फ़सीलों को तोड़ डालेगा
सुतून-ए-वक़्त पे बुझता हुआ सितारा कुछ
सुकूत-ए-शाम का मंज़र बदलने वाला है
मिरी निगाह का है अक्स पारा पारा कुछ
निशान-ए-ज़ीस्त अभी कैसे रौशनी पाए
कि तीरगी का मुक़द्दर में है इजारा कुछ
ख़बर थी शीशा-ए-हैराँ पे बाल आएगा
जुनूँ के दरमियाँ चेहरे को यूँ उतारा कुछ
यक़ीं के बाम से 'आमिर' दिखाई देता है
गुमाँ की राख में पोशीदा है शरारा कुछ
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