अब तो लफ़्ज़ों के तक़ाज़ों का भरोसा न रहा
अब तो लफ़्ज़ों के तक़ाज़ों का भरोसा न रहा
इक सिवा तर्ज़-ए-ख़मोशी के असासा न रहा
आज नादीदा सितारों ने क़बाएँ बख़्शीं
आसमाँ तेरा बदन अब तो बरहना न रहा
कितने सदियों की थकन तू ने समेटी है ज़मीं
फिर भी चेहरा तिरा इस हाल में उतरा न रहा
जिस्म-ए-आशुफ़्ता ने सैलाब सँभाले कितने
हाल क्यूँ ऐसा हुआ हाथ में क़तरा न रहा
ऐ शब-ए-तीरा-बदन ये तो परेशानी है
तेरी शह-रग का लहू आँख में ज़िंदा न रहा
मुंतशिर हो गए ऐवान-ए-तफ़क्कुर 'आमिर'
या'नी अर्शानी-ए-इम्काँ का ज़ीना न रहा
(751) Peoples Rate This