ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं
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ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई
दश्त-ए-बला-ए-शौक़ में ख़ेमे लगाए हैं
तेरी इनायतों का अजब रंग ढंग था
सबा बनाते हैं ग़ुंचा-दहन बनाते हैं
मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी
बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है
तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग
हैरान बहुत ताबिश-ए-हुस्न-दीगराँ थी
निज़ाम-ए-बस्त-ओ-कुशाद-ए-मानी सँवारते हैं
मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी