तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का
तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं
Allama Iqbal
Wasi Shah
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(707) Peoples Rate This
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
निज़ाम-ए-बस्त-ओ-कुशाद-ए-मानी सँवारते हैं
एक जहान-ए-ला-यानी ग़र्क़ाब हुआ
ख़याल-ए-यार का सिक्का उछालने में गया
रौशन अलाव होते ही आया तरंग में
मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
तेरी इनायतों का अजब रंग ढंग था
मेरी बरहना पुश्त थी कोड़ों से सब्ज़ ओ सुर्ख़
लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना
हैरान बहुत ताबिश-ए-हुस्न-दीगराँ थी
गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग