मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी
सो अपने आप से बाहर क़याम कर लिया है
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Wasi Shah
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ख़बर भी है तुझे इस दफ़्तर-ए-मोहब्बत को
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
फिर बदन में थकन की गर्द लिए
बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है
ख़याल-ए-यार का सिक्का उछालने में गया
तेरी इनायतों का अजब रंग ढंग था
एक जहान-ए-ला-यानी ग़र्क़ाब हुआ
दश्त-ए-बला-ए-शौक़ में ख़ेमे लगाए हैं
गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग
निज़ाम-ए-बस्त-ओ-कुशाद-ए-मानी सँवारते हैं
मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी