मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी

मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी

इक ज़िल्लत-ए-वफ़ा थी उठाई न जा सकी

वादों की रात ऐसी घनी थी सियाह थी

क़िंदील-ए-ए'तिबार बुझाई न जा सकी

चाहा था तुम पे वारेंगे लफ़्ज़ों की काएनात

ये दौलत-ए-सुख़न भी कमाई न जा सकी

वो सहर था कि रंग भी बे-रंग थे तमाम

तस्वीर-ए-यार हम से बनाई न जा सकी

हम मदरसान-ए-इश्क़ के वो होनहार तिफ़्ल

हम से किताब-ए-अक़्ल उठाई न जा सकी

वो थरथरी थी जान-ए-सुख़न तेरे रू-ब-रू

तुझ पर कही ग़ज़ल भी सुनाई न जा सकी

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Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki In Hindi By Famous Poet Amir Hamza Saqib. Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki is written by Amir Hamza Saqib. Complete Poem Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki in Hindi by Amir Hamza Saqib. Download free Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki Poem for Youth in PDF. Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki is a Poem on Inspiration for young students. Share Miras-e-be-baha Bhi Bachai Na Ja Saki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.